सोमवार, 16 अगस्त 2010

"पर"


"पर" छोटा सा, 
हल्का,फूल सा कोमल, 
जो मदद करता है पक्षी की , 
आकाश की अनंत 
उचाइयों को छूने मे
जहा पर हम भी 
पहुच सकते है,पर!
पक्षियों की तरह नहीं?
'पर' कल्पनायो से तो हम 
जहाँ के तहां रह जाते है, 
और यह नन्हे पंछी, 
आकाश की अनंत उचाइयों
में उडते हुए हमे चिड़ाते है,
यही तो अंतर है 
इस  "पर" और
उस "पर" में,
एक "पर" आधार है तो 
एक "पर" उचाई.
       --प्रतिभा शर्मा  






सोमवार, 2 अगस्त 2010

कसक

जीवन के सफ़र में
 इकट्ठे चल कर बिछुड़ना है
एक आँख से हँसना है
तो एक आँख से रोना है ,
कल हम याद तुम्हे आयेंगे ,
 दिल में एक कसक छोर्ड जायेंगे
चाह कर भी पल लौटा ना सकेंगे
दिल की कसक को मिटा ना सकेंगे
याद तुम्हारी जब हमे आयेगी
आँख अश्को से भर जायेगी
कहने को तो जिन्दगी गुजर जायेगी
पर तुम्हारी कमी हमेशा रुलायेगी
याद करके हमे तुम आँख नाम ना करना
दिल में मिलने की तमन्ना रखना
                 --प्रतिभा शर्मा