सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

एक असफल प्रयास

 दूर  आकाश में उडते पंछी
को देख कर मन में

बरबस यह ख्याल आया कि
क्यों यह नन्हा पंछी
आकाश कि उन अंतहीन
उचाईयो को छूना चाहता है ?
क्यों वह वहा पहुचना चाहता है ?
जहा पहुचना असंभव है !
जबकि वह जनता है कि
इस नीले सुंदर आकाश कि
कोई सीमा नहीं ! और
उससे लौट कर वापस
इसी धरा पर ही आना है
क्योकि यह कठोर धरा ही
उसके जीवन का
एकमात्र आधार है 
      --- प्रतिभा शर्मा 

बुधवार, 15 सितंबर 2010

भोर की पहली किरण


भोर की पहली किरण से
सारा नभ फिर जी उठा ,
करने लगे गान पंछी और
उपवन महक उठा,
सूर्य के पहले प्रकाश में ,
स्रष्टि ने ली अंगड़ाई ,
रवि को जगता देख कर
स्याह रजनी घबराई ,
रात्रि की इस घबराहट में
चाँद की सिमटी छटा,
और तारो की बारात ने
ली हमसे फिर विदा ,
ओस चमकी मोतियों सी
फूलो ने बिखेरी फिर छटा ,
और स्रष्टि चक्र फिर से
एक कदम आगे बढ़ा
             -- प्रतिभा शर्मा
         

बुधवार, 8 सितंबर 2010

मासूम

खिलती हुई एक
मासूम सी कली है ,
लिये हाथ में
बेबसी की लाठी है ,
आँखों में झलकती
गहन वेदना है ,
लेकिन पेट की आग
बुझाने की मज़बूरी में ,
द्रड़ता के साथ बढ़ा रही है
कदम हवा में !!!
           -- प्रतिभा शर्मा

सोमवार, 16 अगस्त 2010

"पर"


"पर" छोटा सा, 
हल्का,फूल सा कोमल, 
जो मदद करता है पक्षी की , 
आकाश की अनंत 
उचाइयों को छूने मे
जहा पर हम भी 
पहुच सकते है,पर!
पक्षियों की तरह नहीं?
'पर' कल्पनायो से तो हम 
जहाँ के तहां रह जाते है, 
और यह नन्हे पंछी, 
आकाश की अनंत उचाइयों
में उडते हुए हमे चिड़ाते है,
यही तो अंतर है 
इस  "पर" और
उस "पर" में,
एक "पर" आधार है तो 
एक "पर" उचाई.
       --प्रतिभा शर्मा  






सोमवार, 2 अगस्त 2010

कसक

जीवन के सफ़र में
 इकट्ठे चल कर बिछुड़ना है
एक आँख से हँसना है
तो एक आँख से रोना है ,
कल हम याद तुम्हे आयेंगे ,
 दिल में एक कसक छोर्ड जायेंगे
चाह कर भी पल लौटा ना सकेंगे
दिल की कसक को मिटा ना सकेंगे
याद तुम्हारी जब हमे आयेगी
आँख अश्को से भर जायेगी
कहने को तो जिन्दगी गुजर जायेगी
पर तुम्हारी कमी हमेशा रुलायेगी
याद करके हमे तुम आँख नाम ना करना
दिल में मिलने की तमन्ना रखना
                 --प्रतिभा शर्मा

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

एक बार फिर ही सही

तमन्ना है कि तुम आओ
एक बार फिर ही सही,
मुझको तुम अपनायो
एक बार फिर ही सही,
तुम्हे भूलना मुश्किल है ,
तुम पल पल याद आओ
एक बार फिर ही सही,
माना फ़ासले है यहाँ ,
चलो दूरियाँ मिटाए
एक बार फिर ही सही ,
देख कर मुह मोड़ लिया
चलो अजनबी बन मिल जाये
एक बार फिर ही सही
                  -- प्रतिभा शर्मा

बुधवार, 30 जून 2010

पल

भीतर बहती रही दुख की नदी,
बहार खिलती रही अधरों पर मुस्कान,
ऐसे ही कितने रंग बदलते मौसम,
जिन्दगी के रास्तो से गुजर गये
देखती ही रह गयी रीती की रीती
अवसादो के बीहड़ो में भटकते -2
फिसल गए कुछ हथेली से पल
            -- प्रतिभा शर्मा 

गुरुवार, 24 जून 2010

तमन्ना थी

कुछ इस तरह से वक़्त बदला
जानने वाला हर शख्स बदला
आज दिलो में है फासला ,
गिरते गिरते वह शायद ही संभला ,
तमन्ना थी हर पल साथ की,
पर क्या शिकायत करू उससे,
जब अँधेरा  देख मेरा साया बदला
                --- प्रतिभा शर्मा  

मंगलवार, 15 जून 2010

झूठा परिचय



 यह कविता मेरे छोटे भाई वरुण (विक्की) को समर्पित है जो मात्र 25 साल कि छोटी सी उम्र में हम सब को रोता बिलखता छोड़ गया , मैने इस कविता के माद्यम से उन्ही भावो को लाने कि कोशिश कि है पर अगर मेरे प्रयास में कोई कमी रह गयी  हो या मुझ से कोई गलती हो गयी हो  मै आप सब से माफ़ी मांगती हु 
विक्की भाई हम सब तुझे बहुत प्यार करते थे काश तुम वापस आ जाते ! मै जानती हु कि यह असंभव है पर मन है कि मानता नहीं है ,

यह उम्मीद है उसे कि 
उसका हर परिचय साथ है उसके 
उसकी हर राह पर , पर 
कुछ दूर चलने के बाद
मूड कर देखा तो पाया 
पीछे एक मोड़ पर वह खडे है 
आँखों में आत्मग्लानी और
पश्चाताप के भाव लिये
ह्रदय में पीड़ा लिये 
वह सोचता है 
भावनाओ और संवेदनाओ के 
हर प्रहार निरर्थक है क्योकि 
हर परिचय के आगे 
भ्रम का गहन आवरण है 
असहाय होकर वह तय 
करता है अपनी मंजिल 
हस कर चल पड़ता है वह 
अपने तय पथ पर जहा
अन्नत आत्माओ के ज्ञान का 
निश्छल प्रकाश व निर्वाण है 
और पीछे रह जाता है 
तड़पता हट झूठा परिचय 
भ्रम का आवरण लिए 
       --- प्रतिभा शर्मा

गुरुवार, 3 जून 2010

मेरे दिल की वो किताब

आज फिर खोली है मैने ,
अपने दिल की वह पुरानी किताब ,
जिसके पीले पड़े पन्नो पर
सहेजे हुए रखे है मेरे
कुछ अधूरे , कुछ टूटे से
तुम्हारे साथ देखे वो सब ख्वाब
बीते जमाने का हमारा तुम्हारा तराना
ताज़ा है आज भी ज़हन में
मेरे जीवन में तुम्हारा आ जाना
छोटी से उस बात पर ,
बेवजह रूठना हमारा
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
जाना तुम्हारा मुझसे दूर
फिर कभी लौट कर ना आना
आज भी दिल मचल उठता है
 तुम्हारे साथ के लिये
जब भी आता है बारिश का
 वह मौसम सुहाना
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
 कोई भी अब नया बहाना
                            --- प्रतिभा शर्मा