गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

शायद

सपनो और चाहतो के पीछे दौढ़ते-2
जान ही ना पाई कि
कब राह अलग हो गयी और
साथ छुट गया ?
रह गया तो मात्र पछतावा क्योकि
अब उसके पास अनमोल साथ नहीं
सिर्फ खोकली चाहते है और कुछ अधूरे सपने
जो शायद ही सच हो
--प्रतिभा शर्मा

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

मेरे मन कि बात


देखे थे खवाब जो घरोंदो के मैने ,
खवाब खवाब ही रहे,
घरोंदे सब तबाह हो गये
चले थे हाथ पकढ़ कर
जो सफ़र में मेरे ,
ना जाने किस मोड़ पर ,
मेरे हमराह मुझे जुदा हो गए
आज दिल पल पल
सोचने पर मजबूर है
कहते थे कभी जिन्हे
सब सबाब** मेरे
आज ना जाने कैसे
वो ही मेरे सब गुनाह हो गये
--- प्रतिभा शर्मा
** सबाब = पुन्य कर्म और अच्छे काम

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

प्यार तुम भी , प्यार हम भी ,
प्यार का अभिनय अलग है,
कौन है देखा ना जिसने
जिन्दगी मरघट बनी है,
आँख हँसते आदमी की,
अश्रु का पनघट बनी है ,
अश्रु तुम भी अश्रु हम भी,
अश्रु का संचय अलग है,
कौन है मरता नहीं जो ,
जन्म का लेकर बहाना,
कौन है प्यासा नहीं जो,
शांति का और सुख का प्यासा,
प्यास तुम भी , प्यास हम भी,
त्रप्ति का निर्णय अलग है ,
कौन है सुनता नहीं जो ,
आपदयो की कहानी,
कौन है पीता नहीं जो
आंसुओ का गर्म पानी,
दर्द तुम भी , दर्द हम भी,
दर्द का परिचय अलग है ,
कौन है जो प्यार की
इस राह पर चलता नहीं है

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010


बचपन के दुःख भी कितने अच्छे थे ,

तब तो सिर्फ खिलोने टुटा करते थे ,

वो खुशियाँ भी ना जाने कैसी खुशियाँ थी ,

तितली को पकड़ के उछला करते थे ,

पांव मारके खुद बारिश में अपने आप को भिगोया करते थे ,

अब तो एक आंसू भी रुसवा कर जाता है ,

बचपन में तो दिल खोल कर रोया करते थे

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

भ्रमित

समझ कर भी ना जानना,
जान कर भी ना मानना,
मान कर भी ना चाहना,
चाह कर भी ना पाना,
पाकर के खोना,
यही जीवन का दस्तूर है
--- प्रतिभा शर्मा

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

बीहड़


रिश्तों के मायने तलाशते हुए
वह भटक रही है ,
अवसादों के बीहड़ो में
इस उम्मीद में कि
शायद मंजिल को पा ले ,
पर नादान नहीं जानती कि ,
बीहड़ो में रास्ते नहीं मिलते
मिलते है तो सिर्फ,
भटकाव और तुफान
और वह भी एक दिन ,
इन
भूल भुलैया रास्तो और तुफानो
से लडते- लडते ,
इन्ही कि तरह बीहड़ो में
थम जायेगी गुम जायेगी
---- प्रतिभा शर्मा

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

वजूद

जिन्दगी कितनी तन्हा,
कितनी अकेली,
मंजिले तलाशती राहे,
उन राहो पर वह भी,
अकेली बढ़ रही है ,
तलाशने अपनी मंजिल को ,
उसके लब खामोश पर
आँख से बहते आँसू ,
उसके दिल का हाल बयाँ करते है
इन तन्हा राहो में किससे
उम्मीद करे कोई ,
हर तरफ तो है,
केवल पत्थर के दिल,
वह खुद भी तो एक पत्थर है ,
तो क्या पत्थर को दर्द होता है ?
शायद हा ! क्योकि
उसका भी अपना एक वजूद है
---- प्रतिभा शर्मा

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

असर


जहाँ की तहां खड़ी हूँ,
और करती हूँ तेरा इन्तजार ,
सोचती हु कि लौट जाउ ,
क्योकि यह इन्तजार है बेकार,
बढ़ाती हूँ कदम लौटने के लिये,
पर फिर रुक कर,
सोचती हूँ कि शायद,
कर जाये कोई दुआ असर
--प्रतिभा शर्मा