यह कविता मेरे छोटे भाई वरुण (विक्की) को समर्पित है जो मात्र 25 साल कि छोटी सी उम्र में हम सब को रोता बिलखता छोड़ गया , मैने इस कविता के माद्यम से उन्ही भावो को लाने कि कोशिश कि है पर अगर मेरे प्रयास में कोई कमी रह गयी हो या मुझ से कोई गलती हो गयी हो मै आप सब से माफ़ी मांगती हु
विक्की भाई हम सब तुझे बहुत प्यार करते थे काश तुम वापस आ जाते ! मै जानती हु कि यह असंभव है पर मन है कि मानता नहीं है ,
यह उम्मीद है उसे कि
उसका हर परिचय साथ है उसके
उसकी हर राह पर , पर
कुछ दूर चलने के बाद
मूड कर देखा तो पाया
पीछे एक मोड़ पर वह खडे है
आँखों में आत्मग्लानी और
पश्चाताप के भाव लिये
ह्रदय में पीड़ा लिये
वह सोचता है
भावनाओ और संवेदनाओ के
हर प्रहार निरर्थक है क्योकि
हर परिचय के आगे
भ्रम का गहन आवरण है
असहाय होकर वह तय
करता है अपनी मंजिल
हस कर चल पड़ता है वह
अपने तय पथ पर जहा
अन्नत आत्माओ के ज्ञान का
निश्छल प्रकाश व निर्वाण है
और पीछे रह जाता है
तड़पता हट झूठा परिचय
भ्रम का आवरण लिए
--- प्रतिभा शर्मा