गुरुवार, 3 जून 2010

मेरे दिल की वो किताब

आज फिर खोली है मैने ,
अपने दिल की वह पुरानी किताब ,
जिसके पीले पड़े पन्नो पर
सहेजे हुए रखे है मेरे
कुछ अधूरे , कुछ टूटे से
तुम्हारे साथ देखे वो सब ख्वाब
बीते जमाने का हमारा तुम्हारा तराना
ताज़ा है आज भी ज़हन में
मेरे जीवन में तुम्हारा आ जाना
छोटी से उस बात पर ,
बेवजह रूठना हमारा
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
जाना तुम्हारा मुझसे दूर
फिर कभी लौट कर ना आना
आज भी दिल मचल उठता है
 तुम्हारे साथ के लिये
जब भी आता है बारिश का
 वह मौसम सुहाना
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
 कोई भी अब नया बहाना
                            --- प्रतिभा शर्मा