मंगलवार, 23 मार्च 2010

रेत

रेत पर बने कुछ अमिट से कुछ थके से कदमो के निशान देख कर मै समझ ही न पाई कि यह शख्स वाकई अपनी मंजिल तक पंहुचा या पहुचते -२ खुद एक रेत का ढेर हो गया

वक़्त को कुछ इस तरह देखो

,कि तुम वक़्त को देखो वक़्त तुम्हे नहीं ,

क्योकि वक़्त वो चीज़ है

जो बे-वक़्त गुजर जायेगा

फिर भी पता नहीं कमबख्त

वक़्त पर आयेगा कि नहीं आएगा