बुधवार, 30 जून 2010

पल

भीतर बहती रही दुख की नदी,
बहार खिलती रही अधरों पर मुस्कान,
ऐसे ही कितने रंग बदलते मौसम,
जिन्दगी के रास्तो से गुजर गये
देखती ही रह गयी रीती की रीती
अवसादो के बीहड़ो में भटकते -2
फिसल गए कुछ हथेली से पल
            -- प्रतिभा शर्मा 

गुरुवार, 24 जून 2010

तमन्ना थी

कुछ इस तरह से वक़्त बदला
जानने वाला हर शख्स बदला
आज दिलो में है फासला ,
गिरते गिरते वह शायद ही संभला ,
तमन्ना थी हर पल साथ की,
पर क्या शिकायत करू उससे,
जब अँधेरा  देख मेरा साया बदला
                --- प्रतिभा शर्मा  

मंगलवार, 15 जून 2010

झूठा परिचय



 यह कविता मेरे छोटे भाई वरुण (विक्की) को समर्पित है जो मात्र 25 साल कि छोटी सी उम्र में हम सब को रोता बिलखता छोड़ गया , मैने इस कविता के माद्यम से उन्ही भावो को लाने कि कोशिश कि है पर अगर मेरे प्रयास में कोई कमी रह गयी  हो या मुझ से कोई गलती हो गयी हो  मै आप सब से माफ़ी मांगती हु 
विक्की भाई हम सब तुझे बहुत प्यार करते थे काश तुम वापस आ जाते ! मै जानती हु कि यह असंभव है पर मन है कि मानता नहीं है ,

यह उम्मीद है उसे कि 
उसका हर परिचय साथ है उसके 
उसकी हर राह पर , पर 
कुछ दूर चलने के बाद
मूड कर देखा तो पाया 
पीछे एक मोड़ पर वह खडे है 
आँखों में आत्मग्लानी और
पश्चाताप के भाव लिये
ह्रदय में पीड़ा लिये 
वह सोचता है 
भावनाओ और संवेदनाओ के 
हर प्रहार निरर्थक है क्योकि 
हर परिचय के आगे 
भ्रम का गहन आवरण है 
असहाय होकर वह तय 
करता है अपनी मंजिल 
हस कर चल पड़ता है वह 
अपने तय पथ पर जहा
अन्नत आत्माओ के ज्ञान का 
निश्छल प्रकाश व निर्वाण है 
और पीछे रह जाता है 
तड़पता हट झूठा परिचय 
भ्रम का आवरण लिए 
       --- प्रतिभा शर्मा

गुरुवार, 3 जून 2010

मेरे दिल की वो किताब

आज फिर खोली है मैने ,
अपने दिल की वह पुरानी किताब ,
जिसके पीले पड़े पन्नो पर
सहेजे हुए रखे है मेरे
कुछ अधूरे , कुछ टूटे से
तुम्हारे साथ देखे वो सब ख्वाब
बीते जमाने का हमारा तुम्हारा तराना
ताज़ा है आज भी ज़हन में
मेरे जीवन में तुम्हारा आ जाना
छोटी से उस बात पर ,
बेवजह रूठना हमारा
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
जाना तुम्हारा मुझसे दूर
फिर कभी लौट कर ना आना
आज भी दिल मचल उठता है
 तुम्हारे साथ के लिये
जब भी आता है बारिश का
 वह मौसम सुहाना
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
 कोई भी अब नया बहाना
                            --- प्रतिभा शर्मा

बुधवार, 2 जून 2010

नारी जीवन

जिन्दगी उसके साथ साथ
कुछ इस तरह चलती रही
जैसे कांटो में रह कर भी
मासूम कली खिलती रही
चहरे पर मुस्कान लिये,
पर मन में पीड़ा गहन लिये
रिश्तो की मर्यादा की खातिर
वेदना में जलती रही
-- प्रतिभा शर्मा