बुधवार, 26 मई 2010

नन्हा सा दीपक



दूर कही एक हल्की सी ,मन्दिम सी

रोशनी दिखाई दी ,

लगा एक प्रकाश पुंज है

जो दूर से छोटा जान पड़ता है,

पास जाकर पाया तो देखा

वह एक नन्हा सा दीपक था

जो अपनी नन्ही सी लौ लिये खड़ा था

हर तूफानों, झंझावातों , दुःख की हवायों,

और आंसुओ की बरसतो को झेलते हुए

जल रह था ,टिमटिमा रहा था

अचानक वह बोला - ना जाने

कब वो लम्हात आ जाये

जब मै बुझ जाऊंगा , मिट जाऊंगा

पर जब तक जलूँगा

अंधकार दूर करता रहूँगा और

प्रकाश देता रहूँगा

--- प्रतिभा शर्मा