बुधवार, 15 सितंबर 2010

भोर की पहली किरण


भोर की पहली किरण से
सारा नभ फिर जी उठा ,
करने लगे गान पंछी और
उपवन महक उठा,
सूर्य के पहले प्रकाश में ,
स्रष्टि ने ली अंगड़ाई ,
रवि को जगता देख कर
स्याह रजनी घबराई ,
रात्रि की इस घबराहट में
चाँद की सिमटी छटा,
और तारो की बारात ने
ली हमसे फिर विदा ,
ओस चमकी मोतियों सी
फूलो ने बिखेरी फिर छटा ,
और स्रष्टि चक्र फिर से
एक कदम आगे बढ़ा
             -- प्रतिभा शर्मा