जीवन कि परिभाषा अत्यंत दुरूह है,
क्योकि वह न पहेली है , न भोक्ता वास्तु,
न आकाश है , न धरा है ,
न वायु है , न आसमान , और
न महाप्रलय का प्रतिपाक्षी या प्रतिगामी ,
जीवन न शेष है, और न अनेष ,
न नश्वर है , और न अनश्वर
जीवन को मानदंड समझने वाले मिथ्या भ्रम में जीते है ,
तब जीवन क्या है ?
प्रतिभा शर्मा
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