जहाँ की तहां खड़ी हूँ,
और करती हूँ तेरा इन्तजार ,
सोचती हु कि लौट जाउ ,
क्योकि यह इन्तजार है बेकार,
बढ़ाती हूँ कदम लौटने के लिये,
पर फिर रुक कर,
सोचती हूँ कि शायद,
कर जाये कोई दुआ असर
और करती हूँ तेरा इन्तजार ,
सोचती हु कि लौट जाउ ,
क्योकि यह इन्तजार है बेकार,
बढ़ाती हूँ कदम लौटने के लिये,
पर फिर रुक कर,
सोचती हूँ कि शायद,
कर जाये कोई दुआ असर
--प्रतिभा शर्मा
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