PRATIBHA
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
भ्रमित
समझ कर भी ना जानना,
जान कर भी ना मानना,
मान कर भी ना चाहना,
चाह कर भी ना पाना,
पाकर के खोना,
यही जीवन का दस्तूर है
--- प्रतिभा शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरे बारे में
Pratibha
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
फ़ॉलोअर
ब्लॉग आर्काइव
▼
2010
(33)
►
अक्तूबर
(1)
►
अक्तू॰ 18
(1)
►
सितंबर
(2)
►
सित॰ 15
(1)
►
सित॰ 08
(1)
►
अगस्त
(2)
►
अग॰ 16
(1)
►
अग॰ 02
(1)
►
जुलाई
(1)
►
जुल॰ 09
(1)
►
जून
(5)
►
जून 30
(1)
►
जून 24
(1)
►
जून 15
(1)
►
जून 03
(1)
►
जून 02
(1)
►
मई
(10)
►
मई 28
(1)
►
मई 26
(1)
►
मई 24
(1)
►
मई 18
(1)
►
मई 17
(1)
►
मई 11
(1)
►
मई 06
(1)
►
मई 05
(1)
►
मई 04
(1)
►
मई 03
(1)
▼
अप्रैल
(8)
►
अप्रैल 29
(1)
►
अप्रैल 26
(1)
►
अप्रैल 21
(1)
►
अप्रैल 20
(1)
▼
अप्रैल 16
(1)
भ्रमित
►
अप्रैल 15
(1)
►
अप्रैल 07
(1)
►
अप्रैल 01
(1)
►
मार्च
(4)
►
मार्च 30
(1)
►
मार्च 29
(1)
►
मार्च 23
(2)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें