सोमवार, 26 अप्रैल 2010

मेरे मन कि बात


देखे थे खवाब जो घरोंदो के मैने ,
खवाब खवाब ही रहे,
घरोंदे सब तबाह हो गये
चले थे हाथ पकढ़ कर
जो सफ़र में मेरे ,
ना जाने किस मोड़ पर ,
मेरे हमराह मुझे जुदा हो गए
आज दिल पल पल
सोचने पर मजबूर है
कहते थे कभी जिन्हे
सब सबाब** मेरे
आज ना जाने कैसे
वो ही मेरे सब गुनाह हो गये
--- प्रतिभा शर्मा
** सबाब = पुन्य कर्म और अच्छे काम

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