भीतर बहती रही दुःख की नदी,
बहार खिलती रही होठो पर मुस्कान ,
गुजार दिये न जाने कितने मौसम,
उसने अपने बसंत के इन्तजार में ,
बीत जायेगा यह पतझड़ भी एक दिन ,
मन में किये इसी हौसले को रौशन,
दिल में जलाये उम्मीद के दीये को
वह बड़ रही है द्रढ़ता के साथ
अपने तय पथ की ओर !!!
बहार खिलती रही होठो पर मुस्कान ,
गुजार दिये न जाने कितने मौसम,
उसने अपने बसंत के इन्तजार में ,
बीत जायेगा यह पतझड़ भी एक दिन ,
मन में किये इसी हौसले को रौशन,
दिल में जलाये उम्मीद के दीये को
वह बड़ रही है द्रढ़ता के साथ
अपने तय पथ की ओर !!!
-- प्रतिभा शर्मा
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