आज फिर खोली है मैने ,
अपने दिल की वह पुरानी किताब ,
जिसके पीले पड़े पन्नो पर
सहेजे हुए रखे है मेरे अपने दिल की वह पुरानी किताब ,
जिसके पीले पड़े पन्नो पर
तुम्हारे साथ देखे वो सब ख्वाब
बीते जमाने का हमारा तुम्हारा तराना
ताज़ा है आज भी ज़हन में
मेरे जीवन में तुम्हारा आ जाना
छोटी से उस बात पर ,
बेवजह रूठना हमारा
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
जाना तुम्हारा मुझसे दूर
फिर कभी लौट कर ना आना
आज भी दिल मचल उठता है
तुम्हारे साथ के लिये ताज़ा है आज भी ज़हन में
मेरे जीवन में तुम्हारा आ जाना
छोटी से उस बात पर ,
बेवजह रूठना हमारा
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
जाना तुम्हारा मुझसे दूर
फिर कभी लौट कर ना आना
आज भी दिल मचल उठता है
जब भी आता है बारिश का
वह मौसम सुहाना
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
कोई भी अब नया बहाना वह मौसम सुहाना
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
--- प्रतिभा शर्मा
9 टिप्पणियां:
waah bahut umda rachna
तुम्ही बतादो कैसे बहलाऊ
इस नादान मन को
चलता नहीं है जिस पर
कोई भी अब नया बहाना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!! बेहद उम्दा रचना !!!!
http://athaah.blogspot.com/
यही शिकायत है बस तुमसे
तुम्हे भी तो ना आया हमे मनाना
bahut sundar rachna hai
समय निकालकर पिछली भी पढता हूँ ...
bahut sundar
bahut gahre bhav
bahut achhi rachna....
सुन्दर है , बहुत दूरी तो नहीं थी मगर वो क्या चीज है जो हाथ बढ़ाया न जा सका ।
बहुत ही अच्छी रचना.
बहुत अच्छी रचना ... ये सच है किसी को इतना नही रूठने देना चाहिए की सारे द्वार बंद हो जाएँ ...
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