मंगलवार, 15 जून 2010

झूठा परिचय



 यह कविता मेरे छोटे भाई वरुण (विक्की) को समर्पित है जो मात्र 25 साल कि छोटी सी उम्र में हम सब को रोता बिलखता छोड़ गया , मैने इस कविता के माद्यम से उन्ही भावो को लाने कि कोशिश कि है पर अगर मेरे प्रयास में कोई कमी रह गयी  हो या मुझ से कोई गलती हो गयी हो  मै आप सब से माफ़ी मांगती हु 
विक्की भाई हम सब तुझे बहुत प्यार करते थे काश तुम वापस आ जाते ! मै जानती हु कि यह असंभव है पर मन है कि मानता नहीं है ,

यह उम्मीद है उसे कि 
उसका हर परिचय साथ है उसके 
उसकी हर राह पर , पर 
कुछ दूर चलने के बाद
मूड कर देखा तो पाया 
पीछे एक मोड़ पर वह खडे है 
आँखों में आत्मग्लानी और
पश्चाताप के भाव लिये
ह्रदय में पीड़ा लिये 
वह सोचता है 
भावनाओ और संवेदनाओ के 
हर प्रहार निरर्थक है क्योकि 
हर परिचय के आगे 
भ्रम का गहन आवरण है 
असहाय होकर वह तय 
करता है अपनी मंजिल 
हस कर चल पड़ता है वह 
अपने तय पथ पर जहा
अन्नत आत्माओ के ज्ञान का 
निश्छल प्रकाश व निर्वाण है 
और पीछे रह जाता है 
तड़पता हट झूठा परिचय 
भ्रम का आवरण लिए 
       --- प्रतिभा शर्मा

8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सबसे पहले आपके जज्बे और भाव को सलाम की आप उस पीङा को फिर जी सकी...संवेदनशील,मार्मिक और पीछे छूट चुके कभी लौटकर न आने वाले पलों की सशक्त अभिव्यक्ति....

Rajeysha ने कहा…

मुझे भी अपने पड़ोसी शरद की याद आ गई है, उसकी उम्र भी 25 के नि‍कट ही थी। हंसता खेलता शरद, बात बेबात ही ...पता नहीं कहां गया। मौत कड़वे तथ्‍य छोड़ जाती है, जि‍न्‍हें लांघकर आगे बढ़ना होता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत भावप्रधान रचना....

Jandunia ने कहा…

nice

दिलीप ने कहा…

maarmik bhaavon se bhari....

ANAL KUMAR ने कहा…

प्रतिभा जी, यूं तो आपकी कविताएँ व्यक्ति-मन की विविधतापूर्ण छवियों का कोलाज़ ही हैं, लेकिन इस कविता में संवेगों को अपनी राह देते हुए भी उन्हें अति भावुक न होने देने का आपने जो संयमित अंकुश प्रकट किया है, और जिसके चलते मार्मिकता की जगह मर्म को पाने की ललक अभिव्यक्त हुई है, वह प्रभावित करती है |

Lalit Bansal ने कहा…

कविता अच्छी लगी |

Lalit Bansal ने कहा…

कविता अच्छी लगी |