बुधवार, 30 जून 2010

पल

भीतर बहती रही दुख की नदी,
बहार खिलती रही अधरों पर मुस्कान,
ऐसे ही कितने रंग बदलते मौसम,
जिन्दगी के रास्तो से गुजर गये
देखती ही रह गयी रीती की रीती
अवसादो के बीहड़ो में भटकते -2
फिसल गए कुछ हथेली से पल
            -- प्रतिभा शर्मा