को देख कर मन में
बरबस यह ख्याल आया कि
क्यों यह नन्हा पंछी
आकाश कि उन अंतहीन
उचाईयो को छूना चाहता है ?
क्यों वह वहा पहुचना चाहता है ?
जहा पहुचना असंभव है !
जबकि वह जनता है कि
इस नीले सुंदर आकाश कि
कोई सीमा नहीं ! और
उससे लौट कर वापस
इसी धरा पर ही आना है
क्योकि यह कठोर धरा ही
उसके जीवन का
एकमात्र आधार है
--- प्रतिभा शर्मा
क्यों यह नन्हा पंछी
आकाश कि उन अंतहीन
उचाईयो को छूना चाहता है ?
क्यों वह वहा पहुचना चाहता है ?
जहा पहुचना असंभव है !
जबकि वह जनता है कि
इस नीले सुंदर आकाश कि
कोई सीमा नहीं ! और
उससे लौट कर वापस
इसी धरा पर ही आना है
क्योकि यह कठोर धरा ही
उसके जीवन का
एकमात्र आधार है
--- प्रतिभा शर्मा
3 टिप्पणियां:
बढ़िया रचना ... फोटो बढ़िया लगे.
दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं ...
मतलब ये की बेचारे पंछी को भी चैन नहीं इस धरती पे...यहीं रहना है उसे भी..
लेकिन पंछी तो जहाँ चाहे जब चाहे दुनिया की भीड़ से दूर जा सकते हैं...:)
दूसरी और तीसरी तस्वीर बहुत अच्छी लगी..
कविता के एहसास के अंदर और भी कई एहसास है जो अपने आप पढने वाले के पास आते हैं !
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