सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

एक असफल प्रयास

 दूर  आकाश में उडते पंछी
को देख कर मन में

बरबस यह ख्याल आया कि
क्यों यह नन्हा पंछी
आकाश कि उन अंतहीन
उचाईयो को छूना चाहता है ?
क्यों वह वहा पहुचना चाहता है ?
जहा पहुचना असंभव है !
जबकि वह जनता है कि
इस नीले सुंदर आकाश कि
कोई सीमा नहीं ! और
उससे लौट कर वापस
इसी धरा पर ही आना है
क्योकि यह कठोर धरा ही
उसके जीवन का
एकमात्र आधार है 
      --- प्रतिभा शर्मा 

3 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

बढ़िया रचना ... फोटो बढ़िया लगे.
दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं ...

abhi ने कहा…

मतलब ये की बेचारे पंछी को भी चैन नहीं इस धरती पे...यहीं रहना है उसे भी..
लेकिन पंछी तो जहाँ चाहे जब चाहे दुनिया की भीड़ से दूर जा सकते हैं...:)

दूसरी और तीसरी तस्वीर बहुत अच्छी लगी..

Darshan Darvesh ने कहा…

कविता के एहसास के अंदर और भी कई एहसास है जो अपने आप पढने वाले के पास आते हैं !