शुक्रवार, 28 मई 2010
मेरी इच्छा
कुछ कर गुजरने की इच्छा है ,
इच्छाओं के फैले आकाश में,
उड़ जाने की इच्छा है,
इच्छा है हर सुख भोगने की,
दुःख की धुप में तपने की इच्छा है,और
इच्छाओं के अन्नत सागर में,
डूब जाने की इच्छा है,
इच्छा है अपने अस्तित्व को जानने की,
अपनी संस्क्रती को पहचानने की इच्छा है,और
ना पूरी होने वाली इन इच्छाओं को,
पूरी करने की इच्छा है
-- प्रतिभा शर्मा
बुधवार, 26 मई 2010
नन्हा सा दीपक
दूर कही एक हल्की सी ,मन्दिम सी
रोशनी दिखाई दी ,
लगा एक प्रकाश पुंज है
जो दूर से छोटा जान पड़ता है,
पास जाकर पाया तो देखा
वह एक नन्हा सा दीपक था
जो अपनी नन्ही सी लौ लिये खड़ा था
हर तूफानों, झंझावातों , दुःख की हवायों,
और आंसुओ की बरसतो को झेलते हुए
जल रह था ,टिमटिमा रहा था
अचानक वह बोला - ना जाने
कब वो लम्हात आ जाये
जब मै बुझ जाऊंगा , मिट जाऊंगा
पर जब तक जलूँगा
अंधकार दूर करता रहूँगा और
प्रकाश देता रहूँगा
--- प्रतिभा शर्मा
सोमवार, 24 मई 2010
दिल की खामोश तन्हाईयाँ
कहाँ है तू कि तेरी यादे मुझको तड़पा देती है
मेरे तन्हा दिल में , तुझसे मिलने की आस है
तू ना जाने मेरी दुनिया , तुझ बिन कितनी उदास है
कभी कभी यह जिन्दगी कितनी बड़ी सजा देती है
कहाँ है तू कि तेरी यादे मुझको रुला देती है
मरे दिल की गहराइयों में एक अनसुना सा शोर है
क्यों टूटते है दिल यहाँ , क्यों हर एक के मन में चोर है
गैरो की क्या कहे , जब अपनी परछाइयाँ ही साथ नहीं देती है
कहाँ है तू कि तेरी यादे मुझको तड़पा देती है
--- प्रतिभा शर्मा
मंगलवार, 18 मई 2010
एक मोड़ ऐसा भी
सोमवार, 17 मई 2010
इस रिश्ते को क्या नाम दू ?
मै एक तरु के समान,
खड़ी हूँ नितांत अकेली एक मैदान में
तुम धरती के समान
संभाले मुझे अपनी गोद में ,
पर तुम में समाहित होकर भी मै तुममें नहीं
मै एक पर्वत के समान
खड़ी हु एकदम कठोर बनी,
तुम आकाश के समान देते रहे अपनी छत्रछाया,
जिसमें मैने हर कठनाई को झेला,
पर इतनी ऊंचाई के बाद भी मेरी पहुच तुम तक नहीं
मै एक मुसाफिर के समान ,
चल रही हु अकेली अपनी राह पर
इन गहरी स्याह रातो में
तुम चाँद के समान मेरा मार्ग दर्शन करते हुए
मेरे साथ साथ चलते हो ,
पर मेरे हमराह होकर भी तुम मेरे हमसफ़र नहीं
कितना अजीब है ना यह रिश्ता कि ,
तुम मेरे होकर भी मेरे नहीं और मै तुम्हारी नहीं???
-- प्रतिभा शर्मा
मंगलवार, 11 मई 2010
मेरा बसंत ?
गुरुवार, 6 मई 2010
मेरी व्यथा
मेरा गीत किसी परिचय कि भूली हुई कथा है ,
रातो के साथी सपनो ने , छाला नयन के वन में ,
खोया कही नींद का पंछी , खोजू कही गगन में ,
मन अनबन , अनबन मेरा मन , अनबन जीवन प्यासा ,
मेरी प्यास किसी सूरत कि टूटी हुई लता है ,
बीत गया दिन तो बातो में , साँझ गयी पथ चलते ,
अच्छा होता अगर ना ऐसे गिनती में दिन ढलते,
दिन बहका , बहकी यह संध्या , बहके पलिहन सारे ,
मेरी सांस लहर सी भटकी , तट का नहीं पता है ,
रातो कि रागनी अधूरी , बीन चाँद कि रूठी ,
रोटी है चुपचाप चांदनी , कली दाल से टूटी ,
तन टुटा , टुटा मन दर्पण , टूटी आस बेचारी ,
मेरा प्यार किसी जीवन कि उलझन भारी व्यथा है !
बुधवार, 5 मई 2010
अतीत
जिसे जला कर राख करदो ,
हाँ यह हो सकता है कि
इसके पन्ने पन्ने जोड़ कर
एक साहित्य का रूप दे डालो
यही तुम्हारा एकमात्र सच्चा मित्र है
जो कभी धोखा नहीं देता
--- प्रतिभा शर्मा
मंगलवार, 4 मई 2010
सोमवार, 3 मई 2010
सीख लो
तारों से टिमटिमाना सीख लो,
पोछ कर आँसू हंसी देते चलो ,
दुसरो के दुःख को लेकर ,
उनको ख़ुशी देते चलो ,
एक अधूरी चाहत बढ़ ही जायेगी
रूठ कर फिर मान जाना सीख लो
जिन्दगी को मान कर एक चुनौती ,
आंधियो में सिर उठाना सीख लो
--- प्रतिभा शर्मा